ஸ்ரீ ராமச்சந்திர கிருபால: திருத்தங்களுக்கு இடையிலான வேறுபாடு

துளசிதாசரால் இயற்றப்பட்ட நூல்
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11:28, 16 சூன் 2016 இல் நிலவும் திருத்தம்

"ஸ்ரீ ராமசந்திர கிருபால" என்ற இந்த பாடல் துளசிதாசர் என்பவரால் இயற்றப்பட்டது.இந்த பாடல் சம்ஸ்க்ருத சமசுகிருதம் மொழியில் பதினாறாம் நூற்றாண்டில் எழுதப்பட்டுள்ளது. இந்த நூலில் இராமரையும்இராமர் அவரது உயரிய குணங்களையும் ஆசிரியர் போற்றியுள்ளார்.[1]

சமஸ்க்ருதம்/இந்தியில்:

श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं । नवकंज लोचन कंजमुख कर कंज पद कंजारुणं ॥१॥

व्याख्या- हे मन कृपालु श्रीरामचंद्रजी का भजन कर । वे संसार के जन्म-मरण रूप दारुण भय को दूर करने वाले है । उनके नेत्र नव-विकसित कमल के समान है । मुख-हाथ और चरण भी लालकमल के सदृश हैं ॥१॥

कंदर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरज सुन्दरम । पट पीत मानहु तडित रूचि-शुची नौमी जनक सुतावरं ॥२॥

व्याख्या-उनके सौंदर्य की छ्टा अगणित कामदेवो से बढ्कर है । उनके शरीर का नवीन नील-सजल मेघ के जैसा सुंदर वर्ण है । पीताम्बर मेघरूप शरीर मे मानो बिजली के समान चमक रहा है । ऐसे पावनरूप जानकीपति श्रीरामजी को मै नमस्कार करता हू ॥२॥

भजु दीनबंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनं । रघुनंद आनंद कंद कोशल चन्द्र दशरथ नंदनम ॥३॥

व्याख्या-हे मन दीनो के बंधू सुर्य के समान तेजस्वी दानव और दैत्यो के वंश का समूल नाश करने वाले आनन्दकंद कोशल-देशरूपी आकाश मे निर्मल चंद्र्मा के समान दशरथनंदन श्रीराम का भजन कर ॥३॥

सिर मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारु अंग विभुषणं । आजानुभुज शर चाप-धर संग्राम-जित-खर दूषणं ॥४॥

व्याख्या- जिनके मस्तक पर रत्नजडित मुकुट कानो मे कुण्डल भाल पर तिलक और प्रत्येक अंग मे सुंदर आभूषण सुशोभित हो रहे है । जिनकी भुजाए घुटनो तक लम्बी है । जो धनुष-बाण लिये हुए है. जिन्होने संग्राम मे खर-दूषण को जीत लिया है ॥४॥

इति वदति तुलसीदास, शंकर शेष मुनि-मन-रंजनं । मम ह्रदय कंज निवास कुरु कामादि खल-दल-गंजनं ॥५॥

व्याख्या- जो शिव, शेष और मुनियो के मन को प्रसन्न करने वाले और काम,क्रोध,लोभादि शत्रुओ का नाश करने वाले है. तुलसीदास प्रार्थना करते है कि वे श्रीरघुनाथजी मेरे ह्रदय कमल मे सदा निवास करे ॥५॥

मनु जाहि राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरो । करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो ॥६॥

व्याख्या-जिसमे तुम्हारा मन अनुरक्त हो गया है, वही स्वभाव से ही सुंदर सावला वर (श्रीरामचंद्रजी) तुमको मिलेगा. वह दया का खजाना और सुजान (सर्वग्य) है. तुम्हारे शील और स्नेह को जानता है ॥६॥

एही भांति गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषीं अली । तुलसी भावानिः पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मंदिर चली ॥७॥

व्याख्या- इस प्रकार श्रीगौरीजी का आशीर्वाद सुनकर जानकीजी समेत सभी सखिया ह्रदय मे हर्सित हुई. तुलसीदासजी कहते है-भवानीजी को बार-बार पूजकर सीताजी प्रसन्न मन से राजमहल को लौट चली ॥७॥

जानी गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि । मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे ॥८॥

व्याख्या-गौरीजी को अनुकूल जानकर सीताजी के ह्रदय मे जो हरष हुआ वह कहा नही जा सकता. सुंदर मंगलो के मूल उनके बाये अंग फडकने लगे ॥८॥

गोस्वामी तुलसीदास

Lyrics

संस्कृते

॥ श्री रामचन्द्र कृपालु ॥

श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणम् ।
नवकञ्ज लोचन कञ्जमुख कर कञ्जपद कञ्जारुणम् ॥ १ ॥
कंदर्प अगणित अमित छबि नव नील नीरज सुन्दरम् ।
पटपीत मानहुं तड़ित रूचि-शुची नौमि जनक सुतावरम् ॥ २ ॥
भजु दीन बन्धु दिनेश दानव दैत्यवंशनिकन्दनम् ।
रघुनन्द आनंदकंद कोशल चन्द दशरथ नन्दनम् ॥ ३ ॥
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारु अङ्ग विभूषणम् ।
आजानुभुज शर चापधर सङ्ग्राम-जित-खर दूषणम् ॥ ४ ॥
इति वदति तुलसीदास शङ्कर शेष मुनि मनरञ्जनम् ।
मम हृदयकञ्ज निवास कुरु कामादि खलदलगञ्जनम् ॥ ५ ॥
मनु जाहीं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुन्दर साँवरो ।
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो ॥ ६ ॥
एही भांति गोरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषीं अली ।
तुलसी भावानिह पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मंदिर चली ॥ ७ ॥

गोस्वामी तुलसीदासः

English Transliteration:

ஸ்ரீ ராமசந்த்ர கிருபாலு

ஸ்ரீ ராமசந்த்ர கிருபால பஜ மன ஹரண பவ பய தாருணம்
நவகஞ்ச லோசன கஞ்ச முக கர கஞ்ச பத கஞ்சாருணம் ॥1॥
கந்தர்ப அகணித அமித சவி நவ-நீல நீரஜ சுந்தரம்
பட பீத மாநகு தரித ருசி சுசி நௌமி ஜனக சுதாவரம் ॥2॥
பஜூ தீனபந்து தினேஷ தானவ தைத்ய வன்ஷ நிகந்தனம்
ரகுநந்த ஆனந்த கந்த கோஷல சந்த தசரத நந்தனம் ॥3॥
சிர முகுட குண்டல திலக சாரு, உதாரு அங்க விபூஷணம்
ஆஜானுபுஜ ஷர சாபதர், ஸங்க்ராம ஜித கர தூஷணம் ॥4॥
இதி வததி துளசிதாச சங்கர, சேஷ முனிமன ரஞ்சனம்
மம ஹ்ருதய கஞ்ச நிவாச குரு-காமாதி கலதல கஞ்சனம் ॥5॥
மனு ஜாஹீ ரசேஹு மிலிஹி ஸோ பரு, ஸஹஜ் சுந்தர சான்வரோ
கிருநா நிதான் சுஜான் சீலு சனேஹு ஜானத் ராவரோ ॥6॥
ஏஹி பந்தி கோரி அசீஸ் சுனீ சகித ஹிய ஹர்ஷீன் அலி
துளசி பாவநிஹ பூஜி முதித் மன மந்திர் சலி ॥7॥

Goswami Tulsidas

Meaning of the song in English

O mind! Revere the benign Shree Ramachandra, who removes 'Bhav' the Sorrow or Pain,'Bhaya' the fear, and 'Darun' the scarcity or poverty.
Who has fresh lotus eyes, lotus face and lotus hands, feet like lotus and like the rising sun ॥1॥
His image exceeds myriad Cupids, like a fresh, blue-hued cloud — magnificent ।
His amber-robes appear like lightning, pure, captivating. Revere this groom of Janaka’s daughter ॥2॥
Sing hymns of the brother of destitute, Lord of the daylight, the destroyer of the clan of Danu-Diti demons ।
The progeny of Raghu, limitless 'joy', the moon to Kosala, sing hymns of Dasharatha’s son ॥3॥
His head bears the crown, ear pendants, tilak on forehead, his adorned, shapely limbs are resplendent
Arms extend to the knees, studded with bows-arrows, who won battles against Khara and Dooshana ॥4॥
Thus says Tulsidas, O joy of Shankara, and other Sages ।
Reside in the lotus of my heart, O slayer of the vices-troops of Kaama and the like ॥5॥

Goswami Tulsidas

References